Tuesday 7 June 2011

मेरा महबूब अभी आता है..






सजने  संवारने  की  भी  एक  उम्र  हुआ  करती  है
खुद  पे  मरने  की भी एक उम्र हुआ करती है ..


यूँही  नहीं  धड़कता  ये  दिल  हर  किसी  के  लिए
प्यार  करने  की भी एक उम्र हुआ करती है ..


और  जब  प्यार करने की उम्र हो  जाती  है तब  ...


वक़्त  का  मौन  तबीयत  को  बहुत  भाता  है
चांदनी  रात  के आलम  में  कोई  गता  है ..


इस  दिल को हर पल  किसी का इंतज़ार  रहता  है
हर पल ये लगता  है की मेरा  महबूब  अभी  आता  है..

मेरा  महबूब  अभी  आता  है..मेरा  महबूब  अभी  आता  है..

उसने माँगी है....

मेरे वजूद की जांगीर उसने माँगी है ..........
अजीब ख़्वाब कि ताबीर उसने माँगी है ..........
उसकी कैद मे रहता था मैं पहले भी ............
न जाने फ़िर् आज क्यो जन्जीर उसने माँगी है . ...
डर लगता है वो आज भी भूल सकती है हमे ....
न जाने क्यो आज मेरी तस्वीर उसने माँगी है... 
ए  ख़ुदा हमे उसके नसीब मे तू लिख दे  ........
के आज हम से हमारी ही तख्दीर उसने माँगी है....
**********************************प्रशांत  अवस्थी 
 जब भी चाहे किये अंधेरों में उजाले उसने.....                
कर दिया घर मेरा शोलों क हवाले उस.....                       
उस पे खुल जाती मेरे शुक की सिद्दत ........                      
देखे होते जो मेरे पांव के छाले उसने .....                           
जब उसको मेरी दोस्ती पे भरोसा ही न था ......                 
क्यों दिए मेरी वफाओं के हवाले उसने ......                      
जिसका हर ऐब जमाने से छुपाया मैने ....                       
मेरे किस्से सरे-बाज़ार उछाले उसने ....   
***************************************प्रशांत  अवस्थी                     
मैं  अपनी  दोस्ती  को  सहर  में  रुसवा  नहीं  करता
मोहब्बत  मैं  भी  करता  हूँ  मगर  चर्चा  नहीं  करता

जो   मुझसे   मिलने   आ  जाये  मैं  उसका  दिल से   खादिम  हूँ
जो  उठकर  जाना  चाहे  मैं  उसे  रोका  नहीं  करता

जिसे  मैं  छोड़  देता  हूँ  उसे मै  भूल  जाता  हूँ
फिर  चाहे  जितना  भी  प्यारा  हो  मुढ़  के   देखा  नहीं  करता ....

....................................................................................प्रशांत  अवस्थी   

कमाल करती हो


हर  रोज़  भुला  देती  हो  कमाल  करती  हो  ,
हंसते  को  रुला  देती  हो  कमाल   करती  हो ,

नहीं  है  मोहब्बत  तो  साफ़  कह  दो  न  ,
क्यूँ  उम्मीद  बंधा  देती  हो  कमाल  करती  हो  ,

हम  तुम्हे  भूलने  की  कोशिश   जब  भी  करते  हैi ,
आ  के  प्यार  जता   देती  हो  कमाल  करती  हो  ,

ये तो तुमको भी मालूम है के दिया एक ही है मेरे घर में  ,
फिर  भी  उसको हवा  देती  हो  कमाल  करती  हो  ,

भूलने  को  जो  मुझको  तुम मजबूर  करती  हो  ,
फिर क्यों यूँ  याद  दिला  जाती   हो  कमाल  करती  हो  ,
..........................................................प्रशांत अवस्थी