हर रोज़ भुला देती हो कमाल करती हो ,
हंसते को रुला देती हो कमाल करती हो ,
हंसते को रुला देती हो कमाल करती हो ,
नहीं है मोहब्बत तो साफ़
क्यूँ उम्मीद बंधा देती हो कमाल करती हो ,
हम तुम्हे भूलने की कोशिश जब भी करते हैi ,
आ के प्यार जता देती हो कमाल करती हो ,
ये तो तुमको भी मालूम है के दिया एक ही है मेरे घर में ,
फिर भी उसको हवा देती हो कमाल करती हो ,
भूलने को जो मुझको तुम मजबूर करती हो ,
फिर क्यों यूँ याद दिला जाती हो कमाल करती हो ,
..........................................................प्रशांत अवस्थी
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