जब भी चाहे किये अंधेरों में उजाले उसने.....
कर दिया घर मेरा शोलों क हवाले उस.....
उस पे खुल जाती मेरे शुक की सिद्दत ........
देखे होते जो मेरे पांव के छाले उसने .....
जब उसको मेरी दोस्ती पे भरोसा ही न था ......
क्यों दिए मेरी वफाओं के हवाले उसने ......
जिसका हर ऐब जमाने से छुपाया मैने ....
मेरे किस्से सरे-बाज़ार उछाले उसने ....
***************************************प्रशांत अवस्थी
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