मैं अपनी दोस्ती को सहर में रुसवा नहीं करता
मोहब्बत मैं भी करता हूँ मगर चर्चा नहीं करता
जो मुझसे मिलने आ जाये मैं उसका दिल से खादिम हूँ
जो उठकर जाना चाहे मैं उसे रोका नहीं करता
जिसे मैं छोड़ देता हूँ उसे मै भूल जाता हूँ
फिर चाहे जितना भी प्यारा हो मुढ़ के देखा नहीं करता ....
मोहब्बत मैं भी करता हूँ मगर चर्चा नहीं करता
जो मुझसे मिलने आ जाये मैं उसका दिल से खादिम हूँ
जो उठकर जाना चाहे मैं उसे रोका नहीं करता
जिसे मैं छोड़ देता हूँ उसे मै भूल जाता हूँ
फिर चाहे जितना भी प्यारा हो मुढ़ के देखा नहीं करता ....
....................................................................................प्रशांत अवस्थी
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