माना तेरी "नज़र" में तेरा "प्यार" हम नहीं ,
कैसे कहें ? के तेरे "तलब-गार" हम नहीं,
खुद को "जला" के "ख़ाक" कर डाला , मिटा दिया ,
लो अब तम्हारी राह में "दीवार" हम नहीं ,
जिसको संवारा हमने तमन्नाओं के "खून " से ,
गुलशन में उस "बहार" के हक-दार हम नहीं ,
धोका दिया है खुद को "मुहब्बत" के नाम से ,
कैसे कहे ?? के तेरे "गुनाह-गार" हम नहीं ..
कैसे कहे ?? के तेरे "गुनाह-गार" हम नहीं ..
************************* प्रशांत अवस्थी
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