एक ख्वाब है .... उलझा सा ....
पलता है जो ... नींदों में ...
आँहों में है बसता वो ...
एक अरमान है जो सीने में ...
पलकों में दस्तक देता ....है वो
रातों में चुप कर रहता ...है वो ....
काफिला जैसे कोई .... चाहतो का ...
गुजरे राहों से मुसाफिर ... सा वो ...
एक ख्वाब है .... उलझा सा ....
पलता है जो ... नींदों में ...
आँहों में है बसता वो ...
एक अरमान है जो सीने में ...
है हमसफ़र भी .... साथी भी ...
है रास्ता भी वो .... राही भी ...
हसरत है जिसके ... हकीकत कहलाने की ...
पर किस्मत बस ... यूँ हे ... मिट जाने की ......
एक ख्वाब है .... उलझा सा ....
पलता है जो ... नींदों में ...
आँहों में है बसता वो ...
एक अरमान है जो सीने में ...
नयनों में जिसके बसते .....थे कहीं ...
जल गया ... निशाँ उसका ... उजालों में ....
रह गयी बस एक याद .... धुंधले से ....
टुकडो में बिखरे .... एक अन कहीं .... कहानी सी ....
क्यों क्वाहिश है ... उस सपने में रह जाने की .... जी जाने की ...
क्यों हो गयी .... उस ख्वाब से .... यूँ दोस्ती ... अनजानी सी .....
...................................................................प्रशांत अवस्थी
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