Thursday 19 May 2011


कुछ याद नहीं सब भूल गए


बारिशों में नहाना भूल गए
तुम भी क्या वो जमाना भूल गए

कम्प्यूटर किताबें याद रहीं
तितलियों का ठिकाना भूल गए...

फल तो आते नहीं थे पेडों पर
अब तो पंछी भी आना भूल गए

यूँ उसे याद कर के रोते हैं
जेसे कोई ख़जाना भूल गए

मैं तो बचपन से ही हूँ संजीदा
तुम भी अब मुस्कराना भूल गए.....

........................................प्रशांत अवस्थी 

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