Thursday 19 May 2011

जब  भी  मिला  वो  मिल  के  दिल  ही  दुखा  गया ,

बिछड़ा  तो  दर्द  बन  के  रगों में  संमा  गया .

कितना  करीब  था  वो  सभी  दूरियों  के  साथ ,

देखने को  एक  झलक  वो  हमको  तरसा  गया .

बिछड़ा   तो  दर्द  बन  के  नसों  में  संमा  गया .

जब  भी  मिला  वो  मिल  के  दिल  ही  दुखा  गया .

रुसवाइयों  का  खौफ   था  या  अहतियात  थी ,

पानी  पे  लिखा था  नाम  वो  पानी  हिला  गया ,

बिछड़ा  तो  दर्द  बन  के  रगों  में  संमा  गया ,

जब  भी  मिला  वो  मिल  के  दिल  ही  दुखा  गया ,

अपना  बना  के  उसको  महोब्बत  हुई  तबाह ,

कातिल  था  वो  हमको  सूली  पे चढ़ा  गया .

बिछड़ा तो  दर्द  बन  के  रगों  में  संमा  गया ,

जब  भी  मिला  वो  मिल  के  दिल  ही  दुखा  गया .....

................................................प्रशांत अवस्थी 

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