जब भी मिला वो मिल के दिल ही दुखा गया ,
बिछड़ा तो दर्द बन के रगों में संमा गया .
कितना करीब था वो सभी दूरियों के साथ ,
देखने को एक झलक वो हमको तरसा गया .
बिछड़ा तो दर्द बन के नसों में संमा गया .
जब भी मिला वो मिल के दिल ही दुखा गया .
रुसवाइयों का खौफ था या अहतियात थी ,
पानी पे लिखा था नाम वो पानी हिला गया ,
बिछड़ा तो दर्द बन के रगों में संमा गया ,
जब भी मिला वो मिल के दिल ही दुखा गया ,
अपना बना के उसको महोब्बत हुई तबाह ,
कातिल था वो हमको सूली पे चढ़ा गया .
बिछड़ा तो दर्द बन के रगों में संमा गया ,
जब भी मिला वो मिल के दिल ही दुखा गया .....
................................................प्रशांत अवस्थी
बिछड़ा तो दर्द बन के रगों में संमा गया .
कितना करीब था वो सभी दूरियों के साथ ,
देखने को एक झलक वो हमको तरसा गया .
बिछड़ा तो दर्द बन के नसों में संमा गया .
जब भी मिला वो मिल के दिल ही दुखा गया .
रुसवाइयों का खौफ था या अहतियात थी ,
पानी पे लिखा था नाम वो पानी हिला गया ,
बिछड़ा तो दर्द बन के रगों में संमा गया ,
जब भी मिला वो मिल के दिल ही दुखा गया ,
अपना बना के उसको महोब्बत हुई तबाह ,
कातिल था वो हमको सूली पे चढ़ा गया .
बिछड़ा तो दर्द बन के रगों में संमा गया ,
जब भी मिला वो मिल के दिल ही दुखा गया .....
................................................प्रशांत अवस्थी
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